अब तो ना आंसू निकलते
न मन पिघलते
बस रह गया भावों और
यादों का एक समुंदर
है मेरे पास उनकी दी हुई सीख
वह पाठ,
जिसने जिंदगी को जीना सिखाया
दूर हैं वो मुझ से
और पास हैं उनकी याद
जो रहती हैं सदा मन के बहुत करीब
है उनका अपना तारों भरा आशियाना
दिखते वो बस एक
टिमटिमाते तारे की तरह
लगता जैसे देते,
आशीर्वाद वो वहां से
नहीं हैं मेरे पास कोई
शब्द सिवाय आंसुओं के
भावनाओं को अपनी अभिव्यक्त करने को
बस एक भावों का समर्पण है और
श्रद्धांजलि देने का प्रयास

पर आज भटकता सा मन है
कैसे इस यादों के समुंदर में
उतरती डूबती मैं,
अपनी राह आसान करूं
कहां से वो शब्द लाऊं, जो मेरे मन के
दो राहों में से
एक मंज़िल की और
ले जाये मुझको
उन्होंने पूरा किया
अपना धरा से आसमां का सफ़र
इन श्राद्धों के दिनों में फिर
यादों का एक गुबार सा उमड़ पड़ता है
और रह जाता है सिर्फ़,
भावों का एक समर्पण ।

✍️पूजा भारद्वाज

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