लेख-अशोक बालियान, चेयरमैन, पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन

सर्वोच्च न्यायालय ने ‘सेल्वी बनाम कर्नाटक राज्य’ वाद में अपने आदेश में कहा था कि परीक्षण के लिये सहमति की आवश्यकता के सिद्धांत के दायरे को अभियुक्त के अतिरिक्त अन्य लोगों जैसे- गवाहों, पीड़ितों और परिवार वालों आदि तक विस्तृत कर दिया था। अर्थात किसी भी केस में पुलिस को कोई ऐसी जानकारी मिली हो कि पीड़ित पक्ष या आरोपी कुछ छिपा रहे हों या झूठ बोल रहे हों तो उसका पता लगाने के लिये नार्को टेस्ट कराया जा सकता है। जिन केसों में पुलिस को ऐसा लगता है कि आरोप बढ़ा चढ़ा कर लगाए गए है, तो विवेचना के तमाम कानूनी प्राविधान बने हैं कि उसके आरोपो की सत्यता की परख की युक्तियुक्त तरह से कर ली जाय।
सर्वोच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय पीठ ने वर्ष 2000 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा प्रकाशित ‘लाई डिटेक्टर टेस्ट के प्रशासन संबंधी दिशा-निर्देशों’ का सख्ती से पालन करने को भी कहा था। रेसलिंग फेडरेशन के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह और इस केस में पीडिता महिला रेसलर भी नार्को टेस्ट के लिए तैयार हैं। उत्तरप्रदेश के जनपद बदायूं में सीबीआई ने चचेरी बहनों के साथ रेप और हत्या के मामले की जांच में आरोपियों के साथ ही लड़कियों के पिता, उनके एक रिश्तेदार और एक गवाह का नार्कों टेस्ट किया था।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा वर्ष 2000 में प्रकाशित ‘लाई डिटेक्टर टेस्ट के प्रशासन संबंधी दिशा-निर्देशों’ के अनुसार यदि अभियुक्त अथवा आरोपी स्वैच्छिक रूप से परीक्षण का चुनाव करता है,तो उसे उसके वकील तक पहुँच प्रदान की जानी चाहिये और पुलिस तथा वकील का दायित्त्व है कि वे अभियुक्त को इस तरह के परीक्षण के शारीरिक, भावनात्मक और कानूनी निहितार्थ के बारे में बताएँ।
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार रेसलिंग फेडरेशन के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह और इस केस में पीडिता महिला रेसलरों आदि का भी नार्को हो सकता है।

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