पंजाब में पुन: खालिस्तान आन्दोलन व कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली सीमा पर चला किसान आंदोलन देशी-विदेशी फंडिंग पर आधारित था-अशोक बालियान, पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत जिस तरह तेजी के साथ आगे बढ़ रहा है उससे संपूर्ण विश्व अचंभित है, परंतु देश के भीतर तथा विदेश में बैठे इन कट्टर राष्ट्रविरोधी ताकतों को अच्छा नहीं लग रहा है। दिल्ली में चले किसान आन्दोलन को उस खालिस्तान समर्थक उग्रवादी संगठन ने भी समर्थन दिया था, जो अखंड भारत के भीतर एक स्वतंत्र पंजाब/खालिस्तान देश का सपना संजोए बैठा हैं। संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने अपने निहित स्वार्थों के लिए आन्दोलन में शामिल किसानों को कृषि कानूनों के बारे में भ्रमित करके डरा दिया था, कि इन कानूनों से तुम्हारी जमीन चली जाएगी, जबकि उन कृषि कानूनों में किसानों को अपनी फसल को देश के किसी भी स्थान पर बेचे जाने की छूट दी गयी थी तथा मंडियों के टैक्स व उनमें फैले भ्रष्टाचार से भी उन्हें बचाने का प्रावधान किया गया था और जमीन जाने की बात असत्य थी। अब यह बात बिलकुल सामने आती जा रही है कि पंजाब में पुन: खालिस्तान आन्दोलन व कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली सीमा पर चला किसान आंदोलन देशी-विदेशी फंडिंग पर आधारित था।
कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली चले किसान आंदोलन के दौरान खालसा इंटरनेशनल संगठन पर इल्जाम लगा था कि वह भी ऐसा ही एक संगठन है जो किसानों की मदद के नाम पर अलगाववाद की आग को भड़का रहा है। और दिल्ली की सीमाओं पर उन्हें सुविधाएं मुहैया करा रहा है। उस समय भारतीय जाँच एजेंसी एनआईए ने आरोप लगाया था कि ये संगठन आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने के साथ ही अलगाववाद की आग को भड़काने का कार्य कर रहा हैं। क्योकि किसान आंदोलन को कनाडा से भारी समर्थन मिलना और उसमें हुई हिंसक घटनाएं सामान्य नहीं थी।
इस आन्दोलन में किसानों को फुट मसाज से लेकर पूरे एशो-आराम मिल रहे थे, तो सवाल ये उठा था कि ये सब कहां से आ रहा है। उस समय किसान आंदोलन में शामिल कुछ किसान नेताओं को समन भी भेजे गए थे। और इस बाबत 15 दिसंबर 2020 को गृह मंत्रालय की शिकायत पर एक एफआईआर (FIR) भी दर्ज की गई थी। इस एफआईआर में यह भी कहा गया था कि भारत के खिलाफ प्रोपेगैंडा फैलाने के लिए अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी समेत अन्य देशों में भारी फंड जमा किया जा रहा है।
खालिस्तान की मांग को लेकर पंजाब का आम सिख सहमत नहीं है। देश के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने की सिखों के त्याग और बलिदान की परंपरा का कोई मुकाबला नहीं किया जा सकता। लेकिन किसान आन्दोलन के समय पंजाब के युवाओं में अनेकों किसान नेताओं व अलगाववादियों ने जहर भरने का कार्य किया था, जो अब पंजाब में देखने को मिल रहा है।
पंजाब की मौजूदा आप सरकार का खालिस्तानियों को लेकर रुको और देखो का रुख अलगाववादी ताकतों को पुन: मजबूत कर रहा है। अभी हाल में ही पंजाब के अजनाला में पुलिस और खालिस्तान समर्थक संगठन ‘वारिस पंजाब दे’ के समर्थकों के बीच बड़ी झड़प हुई है। पंजाब के एक संगठन ‘वारिस पंजाब दे’ ने किसान आन्दोलन में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। इस संगठन का प्रमुख अमृतपाल सिंह भिंडरावाले को अपना आदर्श मानता है। भिंडरावाले खालिस्तान समर्थक एक ऐसा चरमपंथी था, जिसे ऑपरेशन ब्लू स्टार की कार्रवाई में सेना ने मार गिराया था।
संयुक्त किसान मोर्चा ने 20 मार्च को दिल्ली में दोबारा आंदोलन का एलान किया है। दिल्ली सीमा पर चले आन्दोलन के समय हरियाणा के एक कांग्रेस नेता से आंदोलन के नाम पर करीब 10 करोड़ रुपए लेने के गंभीर आरोप हरियाणा भाकियू के अध्यक्ष गुरनाम चंढूनी पर लगे। इसी तरह संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने एक दुसरे पर भी फंडिंग के आरोप लगाये थे। फंडिंग के कारण ही कुछ किसान नेता तो कृषि कानून वापिस होने के बाद भी आन्दोलन खत्म नहीं करना चाहते थे, क्योकि उनपर रोजाना फंडिंग आ रही थी।
दिल्ली आन्दोलन के दौरान सिंघु बार्डर, टीकरी बार्डर हो या फिर गाजीपुर बार्डर, हर जगह विदेश में रहने वालों ने जमकर पैसा भेजा था। बार्डरों पर लंगर, शराब से लेकर प्रदर्शनकारियों को ऐश-ओ-आराम की सारी सुविधाएं देने के लिए पैसे विदेश से ही आए थे। ट्रैक्टरों को मुफ्त में ईंधन दिया जा रहा था। गांवों से दिल्ली तक आने की सुविधा दी जा रही थी। ट्रालियों-टेंटों में एसी, फ्रीज, पिज्जा, बर्गर की सुविधा तक थी। ज्यादातर प्रदर्शनकारियों को ऐसी सुविधाएं दी गईं थीं, जिसके बारे में उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था।
पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन का किसानों से कहना है कि आंदोलन के नाम पर देश तोड़ने वालों से फंडिंग लेकर आन्दोलन चलाने वाले इन स्वार्थी और देश विरोधी किसान नेताओं के संगठनों को अलग-थलग कर देना चाहिए। क्योकि पर्दे के पीछे इनके आन्दोलन में देश के भीतर सक्रिय टुकडे-टुकड़े गैंग की प्रभावी भूमिका रहती है। कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली चले किसान आंदोलन में अलगाववादियों से मिली फंडिंग पर यदि कार्यवाही होती तो आज पंजाब में पुन: खालिस्तान का आन्दोलन जोर न पकड़ता। किसानों के नाम पर देशी-विदेशी फंडिंग पर आधारित किसान आन्दोलन देश का नुकसान करेंगे। किसान आन्दोलन किसानों के लिए व किसानों के सहयोग से ही चलने चाहिए तभी किसानों का भला हो सकता है।

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