वरिष्ठ पत्रकार हरियावनी फ़िल्मअभिनेता विकास बालियान द्वारा खतौली में भाजपा की हार पर किया गया विश्लेषण..

खतौली में भाजपा की पराजय

भाजपा खतौली कि वह सीट हार गई है जिस पर लगातार जीत रही थी।

कारण कई हैं। इस हार पर विश्लेषको का अपना-अपना मंथन है कुछ की अपनी व्यक्तिगत बातें, लड़ाई है। किसी की व्यक्तिगत समस्या

जिसके चलते सब अलग-अलग इस हार का विश्लेषण कर रहे हैं।

2017 में गुर्जर समाज पूरी तरह बीजेपी के साथ था, लेकिन 2022 तक आते-आते वह अपनी पुरानी परंपरा अर्थात अपने ही प्रत्याशी को वोट देने की प्रवृत्ति पर वापस आ गया।

इसे ऐसे भी समझा जाए के मुजफ्फरनगर में एक समय भाजपा से स्व बाबू हुकुम सिंह गुर्जर, सपा से स्वर्गीय गुर्जर संजय चौहान जी और राष्ट्रीय लोकदल से वीरेंद्र गुर्जर चुनाव लड़ते थे और जीत जाते थे।

ऐसा ही नतीजा हुआ मीरापुर से चंदन चौहान और सरधना में अतुल प्रधान विजय रहे। अब खतौली उपचुनाव में फिर अपने ही बाहर से आए मगर बाहुबली सजातीय प्रत्याशी को ही वोट देकर विजयी बनाया।

उधर श्रीकांत त्यागी प्रकरण से पश्चिम उत्तर प्रदेश का त्यागी समाज भाजपा से बहुत नाराज है उन्होंने भी अपनी नाराजगी खतौली उपचुनाव में दिखाई है उनके नावला जैसे कई बड़े गांव चुनाव को प्रभावित करते हैं।

वहीं पिछले चुनाव में विक्रम सैनी 17,000 से अधिक मतों से जीते थे और इस बार मदन भैया 22000 मतों से जीते हैं कुल मिलाकर उन्हें 40000 के लगभग अधिक वोट पाई है।

इस सीट पर जाट 20000 से कम है 50% पोल के हिसाब से उन्होंने 10000 वोट डाली है जो इस चुनाव को किसी भी तरह से प्रभावित नहीं कर रही।

भाजपा के क्षेत्रीय मंत्री मोहित बेनीवाल का कोई असर आम जनता पर नहीं है।

 

फिल्म शूटिंग के दौरान फिल्म अभिनेता विकास बालियान और फिल्म अभिनेता उत्तर कुमार

यह चुनाव पूरी तरह विक्रम सैनी की टिप्पणियों के चलते संजीव बालियान अकेले लड़ रहे थे।

परंतु भाजपा के वह नेता गण जो गुर्जर समाज से हो, सैनी समाज से हो, जाट समाज से हो या जो जो भी टिकट प्राप्त करने की लाइन में थे, या टिकट की चाह रखते थे उन्होंने कोई समर्थन विक्रम सैनी की पत्नी को नहीं दिया।

क्योंकि विक्रम सैनी की पत्नी की हार का मतलब ही था भविष्य में उनके टिकट की संभावना।

अगर विक्रम सैनी की पत्नी चुनाव जीत जाती तो उनकी आगे टिकट की संभावना पर विराम लग जाता।

चुनाव में समीकरण भी होते हैं। इस बार मुस्लिम वोटों में घात लगाने वाला कोई नहीं था जिसके चलते मुस्लिम वोट पूरी तरह एकमुश्त मदन भैया के पक्ष में आई।

वही संगीत सोम की पराजय के बाद ठाकुर समाज भी भाजपा से इस क्षेत्र में उदासीन है उसने भी उस तरह वोट नहीं किया जैसे कि करता आया है।

बहुत से लोग विक्रम सैनी की पत्नी को इस चुनाव में टिकट देने से नाराज थे उसका नतीजा भी मदन भैया की जीत के रूप में आया है।

यह एक ऐसा चक्रव्यूह था जिसमें हर तरह की व्यूह रचना की गई थी और व्यूह रचना को काटने के लिए केवल संजीव बालियान अकेले मैदान में थे।

उन्हें हर तरह से घेर लिया गया और अंत में वही हुआ जो महाभारत में व्यूह रचना कर अभिमन्यु के साथ किया गया था।

विक्रम सैनी की पत्नी चुनाव मैदान में थी परंतु विक्रम सैनी कहीं किसी गांव से या किसी समाज से एक वोट भी अपने बलबूते लेने की स्थिति में नहीं थे। क्योंकि उनके बड़बोले पन से लोग नाराज ही थे।

खतौली में बाहुबल धनबल बुद्धि बल आदि में विक्रम सैनी की पत्नी से कई हजार गुना आगे रहने वाले मदन भैया चुनाव लड़ने में बहुत माहिर हैं और वह भी खेकड़ा जैसे क्षेत्र से जहां अक्सर गैंगवार चलती रही थी। मदन भैया ने चौधरी चरण सिंह जी के उस कर्म क्षेत्र में खुद अजीत सिंह जी को ही ललकार दिया था। और उन से बगावत करके खुद को साबित भी किया था।

बागपत जावली गांव में स्थित मदन भैया के आवास को देखने भर से ही पता लग जाता है कि वह किस तरह के, किस हैसियत के किस स्वभाव के व्यक्ति होंगे।

उन्हें चुनाव लड़ाने के लिए गुर्जरों के बड़े-बड़े सामाजिक मान सम्मान प्राप्त करने वाले लोग खतौली विधानसभा क्षेत्र में पड़ने वाले गुर्जरों के एक-एक गांव और घर में शिरकत कर वोट मांग रहे थे।

और इस सबके सामने संजीव बालियान अकेले ही विक्रम सैनी की धर्मपत्नी को चुनाव लड़ा रहे थे हालांकि इस चुनाव में मिली पराजय के बाद 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए वह लोग केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान को घेरने का प्रयास करेंगे जिन के लिए संजीव बालियान आंख की बहुत बड़ी किरकिरी है।

और इस सबसे ऊपर इस पूरे चुनाव में राष्ट्रीय लोक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी ने बहुत अधिक मेहनत की है और हर बिरादरी के गांव में पहुंचकर वोट मांगी है जिसका असर भी हुआ है।
यह चुनाव लंबे समय तक राष्ट्रीय लोक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी जयंत सिंह की रणनीति के लिए भी याद किया जाएगा।

इसके साथ यह भी है कि छोटे कार्यकर्ताओं की अनदेखी करना भारी पड़ जाता है और वही प्रशासनिक अधिकारी अगर नेताओं से ऊपर हो जाते हैं तो उसका खामियाजा भी भुगतना पड़ता है।

लोगों में यह चर्चा आम है कि भाजपा के राज में नेताओं की नहीं अधिकारियों की चलती है और अधिकारी बेलगाम हो चुके हैं।

लोग किसी भी नेता से कैसी भी सिफारिश कराने की कोशिश करें उन्हें असफलता ही हाथ लगती है होता वही है जो अधिकारी चाहते हैं।

यह एक तरह से ब्रितानिया हुकूमत जैसा है और उस दौर में अधिकारियों के पास ही अधिकार थे किसी और के पास नहीं इसीलिए आम जनता में आक्रोश हुआ था और एक दिन अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा था।

केंद्रीय मंत्री ने संजीव बालियान ने वैसे कहा भी है कि अगर भाजपा हारती है तो उसकी नैतिक जिम्मेदारी उनकी होंगी और वह नैतिक जिम्मेदारी लेने से पीछे हटने वाले भी नहीं है क्योंकि उन्हें मालूम है अब आगे नैतिक जिम्मेदारी लेकर जो भूल चूक हुई है उन्हें सुधार कर 2024 की तैयारी की जाए

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page