कानूनी पेशे को लेकर एक बड़ा फैसला लिया गया है. शीर्ष संस्था बार काउंसिल ऑफ इंडिया यानी BCI ने विदेशी वकीलों और कानूनी फर्म को भारत में प्रैक्टिस करने की इजाजत दे दी है. इस फैसले के मुताबिक विदेशी वकील कोर्ट में पेश नहीं हो सकते हैं, वे केवल कॉर्पोरेट लेनदेन से जुड़े हुए कामकाज या विदेशी कानून पर अपने क्लाइंट को सलाह देने का काम कर सकते हैं.

क्या है बीसीआई का फैसला?

13 मार्च को, बीसीआई ने आधिकारिक सूचना दी. सूचना में BCI ने कहा कि इससे भारतीय और विदेशी दोनों वकीलों को फायदा होगा. विदेशी वकील और लॉ फर्म भारत में काम कर सकेंगे. इसके लिए विदेशी विधि पंजीकरण और नियमन-2022 के लिए नियम बनाया गया है.

बीसीआई ने साफ कहा है कि कुछ पाबंदियों के साथ इस फैसले से सुनिश्चित किया जाएगा कि यह भारत और विदेशी वकीलों के हित में हो. बीसीआई अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय है, और यह भारत में कानूनी प्रैक्टिस और कानूनी शिक्षा की देखरेख करती है.

इस फैसले के बाद बीसीआई ने तर्क दिया है कि उसके कदम से देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को लेकर होने वाली चिंताए खत्म हो जाएगी. इससे भारत अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक के बीच मध्यस्थता का केंद्र बन जाएगा.  ये नियम उन विदेशी लॉ फर्मों को कानूनी स्पष्टता प्रदान करेगा जो वर्तमान में भारत में बहुत सीमित तरीके से काम करती हैं.

बीसीआई ने अपने बयान में कहा कि यह नियम भारत में विदेशी कानून और अलग-अलग अंतरराष्ट्रीय कानून के साथ अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता मामलों की प्रैक्टिस करने को और कारगर बनाने की दिशा में काम करेगा.

वकीलों के पेशे में क्या बदलने वाला है?

बार काउंसिल देश में विदेशी वकीलों की एंट्री के किसी भी प्रस्ताव का विरोध करता आया है. 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने भी उसकी बात पर सहमति जताई थी कि मौजूदा कानून के तहत भारत में विदेशी वकीलों को प्रैक्टिस करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है.

अब नए फैसले से देश में  विदेशी वकीलों की एंट्री में ज्यादा पेशेवराना रवैया देखने को मिलेगा.  विदेशी वकीलों के लिए सीमित दायरे में भी बड़ा मार्केट उपलब्ध होगा , क्योंकि देश में बड़ी संख्या में विदेशी कंपनियां काम कर रही है और आगे कई कंपनियां निवेश करने वाली हैं.

नए नियम के मुताबिक विदेशी वकील और कानून फर्मों को भारत में अभ्यास करने के लिए बीसीआई के साथ पंजीकरण कराने की अनुमति दी गई है . इसके तहत वो अपने देश के कानून का अभ्यास करने के हकदार होंगे, वे भारतीय कानून का अभ्यास नहीं कर सकते है.

इसके अलावा विदेशी वकीलों या विदेशी लॉ फर्मों को किसी भी अदालत, न्यायाधिकरण या किसी भी वैधानिक या नियामक प्राधिकरणों के समक्ष पेश होने की अनुमति नहीं दी जाएगी.

 शर्तें जान लीजिए

  • नए नियम के मुताबिक विदेशी वकील और लॉ फर्म केवल बिना मुकदमे वाले मामलों में ही प्रैक्टिस कर पाएंगे.
  •  देश में प्रैक्टिस करने के लिए विदेशी वकील या फर्मों को BCI के साथ पंजीकरण कराना होगा.
  • विदेशी वकील के लिए रजिस्ट्रेशन चार्ज 25,000 डॉलर है जबकि कानूनी फर्म के लिए 50,000 डॉलर है. ये रजिस्ट्रेशन केवल पांच साल के लिए वैध होगा.
  • विदेशी वकील या लॉ फर्म को 6 महीने के भीतर फॉर्म-B में नवीनीकरण के लिए आवेदन करने की जरूरत है.
  • विदेशी वकीलों को संयुक्त उद्यम, विलय और अधिग्रहण, बौद्धिक संपदा से संबंधित मामले, अनुबंध के मसौदे वगैरह  मामलों पर प्रैक्टिस करने की इजाजत होगी.
  • एक या एक से ज्यादा विदेशी वकीलों या भारत में पंजीकृत विदेशी कानूनी फर्मों के साथ साझेदारी भी कर सकते हैं.

विदेशी कानून कंपनियां अब तक कैसे काम कर रही थी?

विदेशी कानून फर्मों के भारतीय बाजार में प्रवेश करने का मुद्दा 2009 में बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष पेश किया गया था. ‘लॉयर्स कलेक्टिव बनाम यूनियन ऑफ इंडिया’ मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने अनिवार्य रूप से कहा कि केवल भारतीय कानून की डिग्री रखने वाले भारतीय ही भारत में कानून का अभ्यास कर सकते हैं.

उच्च न्यायालय में अधिवक्ता अधिनियम की धारा 29 के मुताबिक केवल बीसीआई के साथ नामांकित वकील ही कानून का अभ्यास कर सकते हैं. उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि ‘अभ्यास’ में वादी और गैर-वादी दोनों तरह की प्रैक्टिस होंगी.

इसलिए विदेशी कंपनियां न तो भारत में अपने ग्राहकों को सलाह दे सकती थी और न ही अदालत में पेश हो सकती थी. साल 2012 में ‘एके बालाजी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया’ मामले में यह मुद्दा मद्रास हाईकोर्ट के सामने आया था.

2015 में, सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में विदेशी कानून फर्मों की प्रैक्टिस को थोड़ी मान्यता दी थी. ‘एके बालाजी बनाम भारत सरकार’ मामले में मद्रास उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि विदेशी कंपनियां मुकदमेबाजी या गैर-मुकदमेबाजी पक्ष पर तब तक अभ्यास नहीं कर सकती हैं जब तक कि वे अधिवक्ता अधिनियम और बीसीसीआई नियमों पूरा नहीं करती हैं.

नए फैसले में ये कहा गया कि विदेशी वकील भारतीय क्लाइंट को केवल अस्थायी आधार पर यानी ‘फ्लाई इन एंड फ्लाई आउट’ मोड पर सलाह दे सकते हैं. फैसले में यह भी कहा गया है  कि अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक आर्बिट्रेशन से संबंधित अनुबंध से जुड़े विवादों के संबंध में आर्बिट्रेशन की कार्यवाही करने के लिए विदेशी वकीलों को भारत आने से कोई रोक-टोक नहीं होगी.

इसके अलावा, मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 में पेश किए गए अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता के मकसद ध्यान में रखते हुए, विदेशी वकीलों को भारत आने और अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता से संबंधित अनुबंध से जुड़े विवादों में मध्यस्थता कार्यवाही करने से नहीं रोका जाएगा.

कानूनी पेशे में पहले ही बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (बीपीओ)  जैसे फर्मों, लीगल प्रोसेस आउटसोर्सिंग (एलपीओ) ने वकीलों के लिए नियम बनाए गए हैं. ये कहा गया कि पहले वे अनिश्चित कानूनी ढांचे में काम कर रहे थे और सुप्रीम कोर्ट को इस मुद्दे पर हस्तक्षेप करना पड़ा.

क्या था SC का फैसला?

एके बालाजी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया’ मामले को मद्रास और बॉम्बे हाईकोर्ट ने बीसीआई और लॉयर्स कलेक्टिव द्वारा सर्वोच्च न्यायालय मे 2018 में चुनौती दी थी. 2018 में, सुप्रीम कोर्ट ने विदेशी कानून फर्मों और वकीलों को अनुमति देने से इनकार करने वाले उच्च न्यायालय के दोनों फैसलों को बरकरार रखा, कुछ संशोधनों के साथ कुछ मामलों में विदेशी वकील “फ्लाई इन एंड फ्लाई आउट” यानी अपने क्लाइंट को सलाह देने के लिए भारत आ सकते थे.

नए फैसले में सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और रोहिंग्टन नरीमन की बेंच ने 2012 के मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को आंशिक तौर पर सही ठहराया है. ये मामला ‘एके बालाजी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया’ का था.

अब विदेशी लॉ फर्म कुछ वक्त के लिए भारत आकर सलाह दे सकते हैं. इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय आर्बिट्रेशन मामलों के लिए विदेशी वकीलों के भारत आने पर कोई ऐतराज नहीं है. बस शर्त यही है कि भारतीय कानूनी कोड के नियम उन पर भी लागू होंगे.

सुप्रीम कोर्ट ने एडवोकेट एक्ट 1961 के प्रावधानों में भी बदलाव किया है. इस प्रावधान के तहत अंतरराष्ट्रीय कारोबारी मामलों में विदेशी वकीलों पर पूरी तरह पाबंदी थी.

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