एक बच्चे की तरह..
कुछ नया खोजना चाहता हूं
तारों को छुने की कोशिश
तो कभी चांद को देख ललचाता हूं..

आंखे मेरी शरारत और खुशी..
दोनों में ही टिमटिमाती हैं..
जिसे दुनिया से कोई मतलब नहीं
ना अपनों का पता न गैरों का..
जहां खिलौना देखा…उसी तरफ चल दिया…

एक बार फिर मेरे दिल में
एक बच्चा है..
जो बारिश में खेलना और नाचना चाहता हैं
तब तक हंसना चाहता हूं
जब तक मेरे गालों मैं दर्द ना हो..

बच्चा बन फिर से जिंदगी को जीना चाहता हूं
तमाम उलझनें सुलझा
बेखबर सा सोना चाहता हूं
एक बच्चे की तरह..

दो डाट तो सहम जाना चाहता हूं
गर पुचकार लो तो कलेजे से लग जाना चाहता हूं
नीला अम्बर चांद सितारें
ये सब मेरी ही जागीरें हैं
देखता हूं बाहर तो..
बस दीवारें और दीवारें हैं
कभी गैरों में तो कभी अपनों में हंसना चाहता हूं
बन एक बच्चा फिर से जीना चाहता हूं ..

✍️संजीव

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