सपनों के शहर में
आशियां बनाया है
वादों को मुकम्मल,
हमने भी निभाया है

राह कंटीली, पथरीली
हो आई,तब…
मखमली कालीन
हौसलों का बिछाया है।

चलते रहे संग संग
आसमां के नीचे नीचे
सूरज की किरणों से
लड़ियों को खींचे।

सुनहरी किरणें,
उजली चांदनी,
रात की सियाही
बन भोर मुस्काई

बारिश की बूंदें
आंखों को मूंदे
चलती रही मगन
पलकें चूमें गगन।

हृदय में कलकल
नदियों की हिलोरें
चांद को पाने को
बेकल चकोरें।

जीवन पथ पर
बन मीत चलते रहे
सुख दुःख में गिरते
उठते सम्हलते रहे।।

जीवन सफर बस
ऐसे ही,कट जाना है
ख़ुशी हो या गम
बस यूं हीं मुस्कराना है।।

✍️आर्यावर्ती सरोज “आर्या”
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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