माँ के’ आशीष में’ सच मानिए’ इतना दम है।
कि उसके’ सामने लाचार दीखता यम है।

माँ के’ आँचल की’ छाँव बरगदों पे’ है भारी,
जिसको’ सूरज भी’ मानता है’ कि वो शबनम‌ है।

उसकी’ ममता‌ का’ तो सानी नहीं ‌है धरती पर,
राज तिरलोक का’ भी सामने उसके कम है।

सारी दुनियाँ से’ बड़ी,गहरी समुंदर से भी’ जो,
माँ की सूरत में’ त्रिदेवों का’ हुआ संगम है।

माँ की’आँखों में,ही परियाँ व देवियाँ रहतीं,
जिनमें’ हर-एक से’बढ़कर के’ एक अनुपम है।

‘चेतना’ माँ की’ याद आते ही’ सिर झुक जाता,
माँ के’ अंदर ही सृष्टि चक्र का निहित क्रम है।

चेतना शर्मा
आगरा!

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page