कैद नही कर पाई वो लम्हा जिसमें मां से ज्यादा ख़ूबसूरत लगी हूं,
जब भी देखती हूं आइना लगता है मां की छबि हूं।

मैं सो पाऊं सुकूं से,उसने धीमे कदमों के थाप रखें है
देखो सिरहाने मेरी नींद के,उसने अपने ख़्वाब रखें है।

वो भी हो सकती थी कामयाबी के शिखर पर लेकिन
झोली में अपनी उसने मेरी खुशी के अवार्ड रखें है।

देखना चाहती है वो मुझे छूते नीले गगन को
आंखों में अब भी उसने मेरे सपने पाल रखें है।

जाती हूं जब भी घर पर बड़ी फुर्ती खुद में ले आती है
और पसंद के अब भी मेरे सारे पकवान बनाती है।

वो अब भी चिड़ती है मुझसे अब भी गुस्सा करती है
मैं सुनकर उनकी फटकारों को सुकून से भर जाती हूं।

जब देता है ताने ज़माना , घूट ज़हर के पी जाती हूं
उनकी आंखों में जब भी देखूं ख़ुद को अच्छा पाती हूं ।

उनकी सच्ची सच्ची बातों में उनको न बता पाती हूं
अब मोम नही रहा दिल मेरा पत्थर भी मैं सह जाती हूं।

मेरी मुस्कुराहट बेशकीमती है उनके लिए ये अब जान पाती हूं,
सो जब भी पूछती है हाल मेरा बढ़िया कह मुस्कुराती हूं।

किसी और के प्यार की मुझको बिलकुल दरकार नही है
सच पूछो तो मां से ज्यादा मुझे किसी से प्यार नही है ।
✍️ Geetanjali kashyap,indore

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