कैसी जिंदगी जीने को मजबूर हो रहे
जिनके लिए कमा रहे उन्हीं से दूर हो रहे…..

आशियाना है बहुत ही सुंदर सा
खूबसूरत महकाता हुआ गुलशन सा
चार दिन तो थे परिंदे गुलशन में
बार बार उड़ जाने के दस्तूर हो रहे……

कम होता ही रहा मिलने का दौर
सलामती की बातें होने लगी फोन पर
उन्हें तसल्ली है कि सब ठीक है
हम भी झूठी खैरियत बता मसरूफ हो रहे…..

नदी के पास ही था अपना मकान
खुशियों से आबाद था अपना जहान
बाढ़ तरक्की की ऐसी बहती गई कि
दरिया किनारे भी प्यासे होते रहे……

कई तरह का रुख लेती है धूप
जीने की राह दिखाती कई रूप
यूँ तो हर साया किसी धूप से ही मिला है
क्यूँ कच्ची धूप के रुख से परेशान हो रहे……..

किस्मत बदलने आए थे इस दुनिया में.
जीने का सिखा दिया हुनर हकीक़त ने
कभी कोई फकीर तो कोई बादशाह
पर यूँ ही काबिलियत पर मगरूर होते रहे ……….

मालूम है कि तुम सोचोगे एक दिन
कामयाबीअलग कर देती सुख के दिन
छोड़ो.. ये लम्हा भी गुज़र जाएगा,
तुम्हारे सपनों के रंग जीवन भर भरतेंरहे…..

✍️Shubha Mishra
स्वरचित और मौलिक
3/6 /2022
Noida

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By admin

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