यादें होती हैं, धरोहर!
जैसे -मां सम्हाल कर
रखती है, हमारे बचपन के
कपड़े और खिलौने।

जैसे -सूरज आश देकर जाता है
कल सुबह आने की,
जैसे -शशि सोलह कलाओं से युक्त
पूर्णिमा की रात लेकर आता है।

जैसे – कलि देख मन
आशान्वित होता है,
उसके खिलने की खुशी को लेकर।

जैसे -कवि दे जाता है
श्रृंगार की नवीनतम उपमाएं।

✍️सरिता आर्या

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