एक छोटी सी कुर्सी सी की कहानी
लकड़ी , प्लास्टिक से बनी कुर्सी बेचारी
उस की हैं बड़ी व्यथा भारी
हैं नाजुक सी कुर्सी बेचारी
पर कितने नेता और धन्नासेठ बैठे उस पर
दब के रह गई वो कुर्सी बेचारी।

इस संसार में हैं सारा खेल कुर्सी का
तब अपने पर बहुत इतराती है ये कुर्सी रानी
सत्ता की कुर्सी पाने के लिए
कई घमासान युद्ध छिड़ जाते
कई युद्ध इतिहास भी हैं बनाते
अपने अपनों को कुर्सी के लिए
मारने को तैयार हो जाते
इस तख्तोताज के लिए
कई लोगो की जान गवातें
तब खून का घूंट पी कर रह जाती कुर्सी बेचारी
पर फिर भी किसी एक की नहीं हो पाती
ये कुर्सी रानीt
इधर से उधर घसीटी जाती कर्सी रानी
बस चुर चुर की आवाज़ कर के
फिर चुप हो जाती कुर्सी बेचारी
जब बैठता मोटा सा इन्सान कुर्सी पर
तब कशमशा के रह जाती कुर्सी रानी
अपनी आखिरी सांसें गिन ने लगती कुर्सी रानी
बड़े बूढ़े को बहुत सहारा देती कुर्सी रानी
कभी धूप में तपती ,तो कभी घर आए
मेहमान के स्वागत के लिए इठलाती ये कुर्सी रानी
एक बात है उसने जानी
सारी दुनिया हैं कुर्सी की दिवानी
ओर खेल तमाशा कुर्सी का
आज के नेताओं को चाल बड़ी भारी
ना चाहते कोई आंदोलन ,ना कोई खेत
खलियान कियारी
वो चाहे एक कुर्सी , और उस से बनी पहचान न्यारी
इस कुर्सी ने भी खूब सबक सब को सिखाया
झूठ बोल ना, घूस खाना, प्रजातंत्र का
भी खूब रखती हिसाब हैं ये कुर्सी रानी
जब एक समझदार इन्सान कुर्सी पर आएगा
तब इस देश को हर खतरा टल जाएगा
नहीं तो एक टूटी कुर्सी की तरह देश भी
गड्ढे में चला जाएगा।

✍️पूजा भारद्वाज

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